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के बीज
सिद्धों के १५ भेद
४. सिद्धा पारस विहा पण्णत्ता, तंजा - - (१) तित्थसिद्धा, (२) अतित्थसिद्धा, (३) वित्थगरसिद्धा, (४) अतित्थगरसिद्धा, (५) सबुद्धसिद्धा, (६) पत्त यबुद्धसिद्धा, (७) बुद्धबोहियसिद्धा, (८) इत्थीलिंग सिद्धा (2) पुरिसलिंग सिद्धा, (१०) नपुं संग लिगसिद्धा, (११) सलिगसिद्धा, (१२) अन्नलिगसिद्धा, (३) गिहिलिंग सिद्धा, (१४) एगसिद्धा, (१५) अगसिद्धा |
- प्रज्ञापना १
(१) तीर्थसिद्ध, (२) अतीर्थसिद्ध, (३) तीरसिद्ध, (४) अतीर्थरसिद्ध (५) स्वयंसिद्ध (६) प्रत्येक बुद्धसिद्ध, (७) बुद्धबोदितगिद्ध, (८) स्त्रीलिङ्क सिद्ध, (९) पुरुषलिङ्गसिद्ध (१०) नपुंसकलिङ्ग, (११) स्वलिंगसिद्ध, (१२) अन्य लिंगसिख, (१३) गृहस्थ लिगसिद्ध, (१४) एक सिड, (१५) अनेकसिद्ध 1
५. सिद्धों के ३१ गुण-
नव दरिणम चत्तारि आए पंच आइमे-अंते । से से दो-दो भैया, खीर भिलावेण इगतीसं ।
- समवायाङ्ग ३१ आयों कर्मों की प्राकृतियों को अलग-अलग गिनने से सिद्धों के ३१ गुण हो जाते हैं ।
जैसे :-- ज्ञानावरणीयकर्म को ५ दर्शनावरणीयकर्म की है, वेदनीय कर्मको २, मोहनीय कर्म की २, (दर्शनमोहनीय और चारित्रमोहनीय) आयुकर्म की ४, नामकर्म की २ ( शुभनाम और अशुभनाम) गोक्कर्म की २ (उच्चगोत्र और तीन गोत्र ) तथा अन्तरायकर्म की ५ – इन ३१ प्रकृतियों के क्षय होने से सिद्धों के ३१ गुण प्रकट होते हैं। मतिज्ञानावरणीय कर्म के क्षय होने से