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पांचवां भाग : तीसरा कोष्ठक
१५१ भाव में स्थित हैं, कामनाओं से निवृत्त हैं और सुख-दुःख नाम के
द्वन्द्वी से मुफ्त हो चुके हैं 1 ५. य इत् तद्विदुरते अमृतमानशुः । -अथर्ववेद ॥१०१२
जो उस उस ब्रह्म को जान लेते हैं, वे मोक्ष को प्राप्त होते हैं । ६. यः स्नाति मानसे तीर्थ, स वै मोक्षमबाप्नुयात् ।
-पुराण जो सत्य, शील, क्षमा, अहिंसा आदि मानसतीर्थ में स्नान करता
है. वही मोक्ष को प्राप्त होता है । ७. सकामः स्वर्गमाप्नोति, निष्कामो मोक्षमाप्नुयात् ।।
-अत्रिस्मृति फलप्राप्ति की भावना से धर्म करनेवाला स्वर्ग एवं निष्काम
भाव से धर्म करने वाला मोक्ष पाता है 1 ८. मोक्ष जाते समय भौतिक चीजें तो छोड़नी पड़ती ही हैं,
लेकिन साधनभूत (घोड़े की तरह) धर्मक्रिया भी छोड़नी पड़ती है।