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१. यो मितं भुक् स बहु भुङ्क्ते ।
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जो परिमित खाता है, वह बहुत खाता है ।
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२. गुणाश्च षमितभुजं भजन्ते. आरोग्यमायुश्च वलं सुखं च अनाविलं चास्य भवत्यवश्यं न चैन माधून इति क्षिपन्ति । - बरनीति ५।३४ परिमित भोजन करनेवाले को वे छः गुण प्राप्त होते हैं— अरोग्य, आयु, बल और सुख तो मिलते ही हैं। उनकी संतान सुन्दर होती हैं तथा यह बहुत खानेवाला है, ऐसे कहकर लोग आक्षेप नहीं करते ।
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मित भोजन
३. हियाहारा मियाहारा अप्पाहारा य जे नरा । न ते विज्जा चिमिच्छति, अपाणं ते तिमिच्छा ॥
- नीतिवावामृत २५२३८
नियुक्ति ५७८
- जो मनुष्य हितभोजी, मितभोजी एवं अल्पभोजी है, उसको वैद्यों की चिकित्सा की आवश्यकता नहीं होती । ने अपने आप ही चिकित्सक (वंश) होते हैं ।
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कालं क्षेत्र मात्रां स्वात्म्यं द्रव्य - गुरुलाघवं स्वबलम् । ज्ञात्वा योऽम्यवहार्य भुक्त कि भरजस्तस्य ॥
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- प्रशमरति १३७