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पांचवां भाग दूसरा कोष्टक
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५. गंगाशहर के जगन्नाथ वैद्य विवाह के प्रसंग पर रतनगढ़ में पौने दो मामा बादाम का सीरा खा गए (एक धामे में लगभग ३-४ र सीरा समाता है ।)
६. डूंगरगढ निवासी छोगमलजी मूलचन्दजी भादानी ५-५ सेर बादाम की कलियाँ सा जाते थे । हरखचन्दजी भादानी ५-५ सेर आमरस पी जात े थे ।
७. मागणी पायलो पधारे। दीक्षार्थी भानजी का पक्का पानी और दाल बाटियां अधिक देखकर रतनगढ़ के श्रावक कुशंकाहुए कार्योल उड़कर एक घड़ा पानी एक साथ पी गए श्रावकों की शंका दूर हुई । ८. चैनजी चिमनजी स्वामी ने चुरू में गुरुमुखरायजी कोठारी के यहाँ से दूध, दही, मक्खन, ठंडी रोटियाँ आदि १८ मेर करीब वजन की गोचरी की एवं विहार करके शहर के बाहर जाकर नाश्ता कर लिया। कोठारीजी ने पुछा कमी तो नहीं रही ? मुनि बोले-नाश्ता हुआ है, गोचरी तो आगे 'जाकर करेंगे।
६. चैनजी स्वामी एक बार आहार करने के बाद सवा सेर घी (अधिक आ गया था) डेढ़ मेर चीनी में मिलाकर खा गए । गृहस्थाश्रम में उन्होंने शर्त लगाकर गेहूँ से भरी हुई गाड़ी को अपनी पीठ पर उठाकर सारे गेहूँ ले लिए थे । १०. छोटूजी स्वामी ( जयपुर निवासी) दुपहरी (टीकन) में पाँच रुपये की बर्फी खा जाते थे। उन्होंने दीक्षा की अर्ज की,