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भोजन का समय
१. बुभुक्षाकाली भोजनकालः ।
नीतिवाक्यमृत २५।२६ भूख लगे, बहा भोजन का समय है । २. अक्ष धिवेनामृतमप्युप मृत भर्गत विषम् ।
-नीतिवाक्यामृत' मुख के बिना लावा हा अमृत भा जहर हो जाता है । ३. नारनीयात मांधिवेलायां, नगच्छेन्नापि संविशेत् ।
-मनुस्मृति ४१५५ संभ्यास मय भोजने, गमन और मन नहीं करना चाहिए । ४. कौन भाव आहार के इस्छक ?
नरक के जीन्न असंहपसमयवाले अन्त मुहून से आहारार्थी (आहार करने के इच्छुक) होते हैं । तिर्यञ्चो में पृथ्वी आदि स्थावर-जीव प्रति समय, हीन्द्रियश्रीन्द्रिय,-चतुरिन्द्रिय अगंख्यासमय वाले अन्नमुहूर्त से तथा तिर्थञ्चपञ्चेन्द्रिय जीव जघन्य अन्तमुहुर्त से एवं उत्कृष्ट दो दिन से आहारार्थी होते हैं । मनुष्यों का जघन्य अन्तम रट एवं उत्कृष्ट तीन दिन के अन्तर से आहार की इच्छा होती है ।
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