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वक्तृत्वकला के बीज
का चिन्तन करे-यदि आचार्य और माधु मुहा पर अनुग्रह कर (मेरे द्वारा लाया हुआ आहार लें) तो मैं निहाल हो जाऊँ-मानूं कि उन्होंने मुझे भवसागर से तार दिया । इस प्रकार विचारकर मुनि प्रेमपूर्वक साधुओं का या काम दे । उन निमन्त्रित साधुओं में से यदि कोई साधु भोजन करना
चाहे तो उनके साथ भोजन करे । ६. खानेवाले दो प्रकार के होते हैं---
कुत्तों की तरह इद्रीना-झपटी करके खानेवाले, कौवे की तरह सभी साथ बैठकर खानेवाले ।
--श्रीरामकृष्ण भोजन के समय मौन१. भोजन करते समय खाद्यपदार्थों की निन्दा या प्रशंसा
करने से कर्मों का बन्ध होता है अतः उस समय प्रायः मौन कर लेना चाहिए।
-धनमुनि २. ये तु संवत्सर पूर्ण, नित्यं मानेन भुञ्जते । युगकोटिसहस्र तः, स्वर्गलोके महीयत ।।
-चाणक्यनीनि १११६ जो भोजन करते समय एक वर्ष तक पूर्ण मौन रख लेते हैं, वे हजार-कोटि युग तक स्वर्ग में पूजे जाते हैं।