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________________ ५ समाधि १. समाधिर्नाम राग-द्वेपपरित्याग :। -सूत्रपांग चूणि ११२।२ राग हप का त्याग ही समात्रि है । २. कमलचित्त कम्गता समाधि । -विसुद्धिमग ३।२ कुगल (पवित्र) चित्त की एकाग्रता ही समाधि है। ३. मुखिनो वित्त समाधीयति ।। ___–विसुद्धिमाग ३।४ मुग्नी का चित्त एकाग्र होता है । ४. समाहितं वा चित्त थिरतरं होति। -विसुद्धिमगा ४१३६ समाहित (एकाग्र हुआ) चित्त ही पूर्ण स्थिरता को प्राप्त करता है। ५. समाधिस्सऽग्गिसिहा व लेयसा, तबो य पन्ना य जसो पवइ । -आचारात श्रु० २।१६।५ अग्नि-शिखा के समान प्रदीप्त एवं प्रकाशमान रहनेवाले समाधियुक्त गायक के तप प्रज्ञा और यश निरन्तर बढ़ते रहते हैं। लाभालाभेन मथिताः, समाधि नाधिगच्छन्ति । -थेरगाथा २१०२ जो लाभ या अलाभ से विचलित हो जाते है, वे समाधि को प्राप्त नहीं कर सकते। ७. समाहिकारए गं तमेव समाहि पडिलभइ । -भगवती ७।१ समाधि देनेवाला समाधि पाता है । ८०
SR No.090530
Book TitleVaktritva Kala ke Bij
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDhanmuni
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages837
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size8 MB
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