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________________ पांचवा भाग : दूसग कोष्णक ७६ होगा अन्धकार दूर करने का यह एक ही साधन है । ४. अकारो वासुदेवः स्यादुकारस्तु महेश्वरः । मकारः प्रजापतिः स्यात्, त्रिदेवो ॐ प्रयुज्यते ।। 'अ' का अर्थ विष्णु है, '' का अर्थ महेश है और 'म' का अर्थ ब्रह्मा है अतः तीनों देवों के अर्थ में ॐ का प्रयोग किया जाता है । अरिहन्ता अमरीरा, अयरिस उतराय-मगिागो। पढमक्खरनिष्फन्नो, ॐकारों पञ्चपरमिट्ठी ॥ यद् द्रव्यसंग्रटीका, पृष्ठ १८२ जनाचामों के मनानुसार'ॐ' का अर्थ इस प्रकार हैअरिहन्त का प्रसिद्धों का दूसरा नाम अशरीरी भी है । अतः अशरीरी का भी 'अ' आचायो का 'आ' उपाध्याय का 'उ' और साधु का दूसरानाम मुनि भी है, इसीलिए मुनि का 'म' लिया। फिर इन सबकी मन्धि करने से ओम बन गया । जैसेअ--अ- आ, आ+आ =आ, मा+उ=ओ, ओ+म=ओम् । बच्चा जन्मते समय आ-आ-आ, कुछ बड़ा होने पर उ-उ-उ अधिक बढ़ने पर म-म-म, करने लगता है। __-स्वामी रामतीर्ष स्वामीजी का कहना है कि ॐ स्वाभाविक शब्द है । अतएव वच्चे के मुंह से भी इसके अंश (अ. उ. म.) स्वभाव से ही निकलसे हैं। ७. सकरं च हकारं च लोपयित्वा प्रयुज्यते । सोहं में 'स' और 'ह' का लोप करने में ॐ रह जाता है, इस प्रकार सोह में भी ॐ का प्रयोग किया जाता है।
SR No.090530
Book TitleVaktritva Kala ke Bij
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDhanmuni
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages837
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size8 MB
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