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वक्तृत्वकला के बीज
हृदय को पृष्ट बनानेवाले भोज्यपदार्थ गायिक-प्रकृतिवाले मनुष्यों को प्रिय होते हैं अतः ये सात्त्विक कहलाते हैं ।
तिकडुबे, अतिख, अतिनमकीन, अतिउष्ण, तीखे, लसे, जालन पंदा करनेवाले दःख-शोक एवं राग उत्पन्न करनेवाले भोज्यपदार्थ राजस-प्रकृतिवाले मनुष्यों को प्रिय होते हैं अतः ये राजस कहलाते हैं।
बहुत देर का रखा हुआ, रसहीन , दुर्गन्धित, बाभी, जूठा, अमेध्य अपवित्र भोजन तामस-प्रकृतिवाले मनुष्यों को प्रिय होता
हैं अतः मह तामस कहलाता हैं। ४. नाम उवणा दविए, खेल भावे य होंति बोधयो ।
एसो खलु आहारो, निक्खेनो होइ पर्चाबहो ।। दब्वे सचिस्तादि, घेत्त नगरस्स जणयो होइ । भावाहारो तिनिहा, ओए लोमे य पकवेव ||
-सूत्रकृतांग भु० २ अ० ३ नियुक्ति आहार का नाम, स्थापना, ध्य, शेक, और भाव में पांच प्रकार से निक्षेप होता है । किसी वस्तु का नाम आहार रखना नामाहार है एवं आहार की स्थापना करना स्थापमाआहार है । म्याहार तीन प्रकार का है-१. सचित्त २. अत्रित्त ३. मिश्र। जिस क्षेत्र में आहार किया जाता है, सपन्न होला है अथवा आहार का व्याख्यान होता है, उम क्षेत्र को प्रसार कहते हैं अथवा नगर का जो देश, धन-धान्यादि द्वारा उपभोग में जाता है, वह क्षेत्र आहार है।
क्षुधावेदनीयकर्म के उदय से भोजनझप में जो वस्तु ली जाती है, उसे भावनाहार कहते हैं। वह लीन प्रकार का है