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१. अन्यच्छ्रेयोऽन्यदुतंत्र प्रेयस्ते उभे तयोः श्रये आददानस्य साधु उ प्रेयो वृणीते ।
पदार्थ दो प्रकार के हैं- भय और प्रेय !
भोजन के भेद
नानार्थे पुरुषं सिनीतः । भवत, हीयतेऽर्थाद्य
--कठोपनिषद् १०२०१
आरम्भ में दु:ख व अन्न में मुख देनेवाला श्र ेय और इससे उल्टा सुखी और पेय का ग्राहक
प्रेय कहलाता है। दुखी होता है ।
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२. प्रेमदृष्टि से असन का लेना है अन्याय, श्रष्टि से असन तो, चन्दन है निरुपाय |
आहारा
यातयामं उच्छिष्टमपि
३. आयुः सत्वबलारोग्यसुखप्रीतिविवर्धनाः ।
रस्याः स्निग्धाः स्थिरा हृद्या आहाराः सात्विकप्रियाः ||८|| कट्वम्न-लवणात्यु तीक्ष्णरूक्षविदाहिनः । राजसम्येष्टा, सुःखशोकभयप्रदाः
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गतरसं, पुनिर्युषितं च यत् । मध्यं भोजनं तामसप्रियम् ॥ १०॥ -- गीता अ०-१७ मनुष्य का आहार सात्विक, राजस और तामस के भेद में तीन प्रकार की है- आयु, जीवनशक्ति बन्न, आरोग्य, स ुख एवं प्रीति को बढ़ानेवाले तथा रसीने, चिकने, जल्दी खराब न होनेवाले एवं
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