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आहार
अन्न-- अन्न वे विशः।
--शतपथब्राह्मण ६।७।३०७ अन्न ही प्रजा का आधार है। अन्नं हि प्राणाः ।
-ऐत्तिरीय-ब्राह्मण-३२।१० अन्न ही प्राण हैं। ३. अन्नेन वाव सर्वे प्राणा महीयन्ते ।
-तत्तिरीय उपनिषद् १४१ अन्न से ही सब प्राणों की महिमा बनी रहती है । ४. अन्नं ब्रह्मति व्यजानात् । -तैतरीयआरण्यक ६२
यह अच्छी तरह जान लीजिए कि अन्न ही ब्रह्म है । ५. अन्नसमं रत्नं न भूतं न भविष्यति । -वचरसराम-समुश्चय
अन्न के समान रन न तो हुआ और न कभी होगा। ६. नास्ति मेघसमं तोयं, नास्ति चात्मसमं बलम् । नास्ति चक्ष : समं तेजो, नास्ति चान्नसमं प्रियम् ।
-चाणक्यनीति ५५१७ मेघ मल के समान जल नहीं, आत्मबल के समान बल नहीं, आंख के समान तेज नहीं और अन के ममान कोई प्रिय वस्तु नहीं ।