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वक्तृत्वकला के बीज
६. गइलक्खणो उ धम्मो, अहम्मी ठाणलक्षणों ।
भापणं सनदा महं भोगाहा क्सणं ६॥ वत्तणालक्खणो कालो, जीवो उवओगलक्खणो । नाणणं दसणेण च, सुहेण य दुहेण य ||१०|| सहन्धयार-उज्जोओ, पभा छायातबो वि य । बन्न-रस-गन्ध-फासा, पुग्गलाणं तु लक्खणं ॥१२।।
-उत्तराध्ययन २८ गति में अपेक्षित सहायता करना धर्मद्रव्य का लक्षण है । ठहरने में अपेक्षित सहायता करना अधर्मद्रव्य का लक्षण है । आकाश सभी द्रव्यों का भाजन है । अवगाहन करना एवं दूसरे द्रव्यों को अवकाश देना उसका लक्षण है ।।६।। पदार्थों के परिवर्तन में सहायक होना कालप्रन्य का लक्षण है । जीवद्रव्य का लक्षण उपयोग है तथा शान, दर्शन, सुख और दुःख से भी जीव पहचाना जाता है ।।१०॥ शब्द, अन्धकार, उद्योत, प्रभा, छाया, आतप, वर्ण, गन्ध, रस, स्पर्श-ये पुग्गलद्रव्य के लक्षण हैं ॥१२॥ उत्पाद-व्यय-प्रौष्यघटमौलिसुवर्णार्थी, नाशोत्पादस्थितिब्बलम् । शोक-प्रमोद-माध्यस्थ्य, जनो याति सहेतुकम् ॥५६।। पयोव्रतो न दध्यत्ति, न पयोत्ति दधिव्रतः । अगोरसनतो नोभे, तस्माद्वस्तु त्रयात्मकम् ||६०॥
__-आप्तमीमांसा / सीन मनुष्प सुनार की दूकान पर गए । एक को स्वर्णपट लेना
था, दूसरे को स्वर्णमुकुट की आवश्यकता थी एवं तीसरा केवल