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चौथा भाग तीसरा कोष्ठक
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गया। महल को छत बहुत ऊँची थी। वह उससे भी बहुत ऊँचे चला गया, और आकाश में अधर ठहर गया । फिर बादशाह के इशारे पर अपने शिष्य को नीचे उतारने के लिए गुरु ने कुछ कहा लेकिन शिष्य इतना ध्यानमग्न था कि उसने कुछ नहीं सुना । तब गुरु ने अपनी झोली में से एक बड़ाऊ निकालकर नीचे रखी और ध्यानमग्न होकर उस पर दृष्टि जमाई। खड़ाऊ ने ऊपर जाकर शिष्य के चारों ओर चक्कर लगाया और उसकी गर्दन पर कई बार तड़ातड वार किया। तब शिष्य का ध्यान भंग हुआ और वह धीरे धीरे नीचे उतरने लगा। अंत में वह उसी आसन में जमीन पर आ बैठा । खड़ाऊ पहले ही गुरु के पास वापस आ गई थी । इब्नबतूता आदि दर्शकों के आश्चर्य का ठिकाना न रहा ।
७. सुना है कि स्वामी दयानन्द ने सोलह हॉर्स पावरवाली चार घोड़ों की गाड़ी का एक अंगूठे से रोक दिया था । यह देखकर जोधपुर नरेश उनके पैरों में पड़ गये एवं भक्त बन गये ।
पंजाब के योगिराज देबमूत्ति ने मेरठ में कई हजार की भीड़ में अपनी छाती पर दो हाथियों को खड़ा किया। लोहे की मोटी थाली का दिखलाकर उन्होंने उसे हाथों से कागज की तरह फाड़ डाला ।