________________
चौथा भाग चौथा कोष्ठक
सहारे स्त्री के पास जा खटके। भय, लज्जा और क्रोध से पिसी हुई स्त्री ने कहा :
हाड़-मांस को देह मम, ता पर जितनी प्रीति । तिसु आधी जो राम प्रति अवसि मिटहि भव-भीति ।।
-
एक
उन्हें ज्ञान हो गया एवं साधु बनकर तीर्थों में सत्संग करले हुए घूमने लगे । वि० सं० १६३१ में अयोध्या में रामायण की रचना आरम्भ की फिर उच्चकोटि के २१ ग्रन्थ और बनाये जिसमें से १२ ग्रन्थ वर्तमान में मिलते हैं। इन्हें हिन्दी का शेक्सपियर और कालिदास कहा जाता है।
एक बार अकबर ने इन्हें चमत्कार दिखाने के लिए कहा और न दिखाने पर लालकिले में बन्द करवा दिया अचानक बन्दरों की सेना ने आकर किले में श्राहि-त्राहि मचादी, (हनुमान का इष्ट था) अकबर ने माफी मांगी
एक बार एक स्त्री का पति मर गया था । श्मशान जाते समय उसकी स्त्री ने कुटिया में आकर इन्हें प्रणाम किया । इन्होंने सहजभाव में कह दिया । 'सौभाग्यवती हो !' चिल्लाकर स्त्री ने कहा
पति हमारा चल बसा, हम भी चालनहार । तुलसी तुम्हरे वचन का होगा कवन हवाल ||
तुलसीदास जी ने मुर्दा मँगवाकर उसके सिर पर हाथ रखा और राम का ध्यान किया
---
J
तुलसी मड़ा मंगाय के दिया शीश पर हाथ | हमतो कछु जाने नहीं, तुम जानो रघुनाथ ॥