________________
पाँचवां भाग : पहला कोष्टक
१ नामश्रावक, २ स्थापनाश्रावक, ३ व्यथावक, ४ भावश्रावक, इस प्रकार श्रावक के चार भेद है। यहां भावभावक का अभिगार
भाष श्रावक के तीन प्रकार ....
१ दर्शनपानक-ऋष्ण-णिक आदिवत् अवनीसम्बगद्दष्टि, २ अती श्रावक-पाँच अणुव्रतधारी,
३ उत्तरगुणाश्रानक-सम्पूर्ण बारहात धारण करनेवाला । ५. चवदं नुक्यो बारह भूल्यो, नहीं जारणं छः काया का नाम । गाँव ढगे फेरियो, श्रावक म्हारो नाम ।
-राजस्थानी दोहा ६. चतारि समगमोवासगा एणरणत्ता, तं जहाअम्माघि इसमाणे, भाइस माणे, भित्तममारणे, सवत्तिसमाण ।
-स्थानान ४।३।३२१ चार प्रकार के श्रावक कहे हैं-- १ माता-पितासमान-एकान्त में हितशिक्षा देकर साधुओं को
सजग करनेवाने । २ भाईममान-साधुओं को प्रमादी देवकर वाहे ऊपर से क्रोध
भी करे, किन्तु हृदय में हित की इच्छा करने वाले । ३ मित्रममान-साधुओं के दोषों की उपेक्षा करया यावल गुण
की जेनेवाले । ४ सालीसमान-माधुओं के छिद्र देखनेवान्ने । चतारि समलोवासगा पत्ता, तं जहाअदागसमायो, यहागरामाणे, खाणुसमाणे, ग्ब रकटसमागे ।
-स्थानाङ्ग ४।३।३२१