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वक्तृत्वकला के बीज
आवश्यक चार प्रकार का कहा है१ माम-आवश्यक, २ स्थापना आवश्यक, ३ द्रव्य-आवश्यक ४ भाव-आवश्यक ।
प्रतिक्रमणस्वस्थानाद् यत् परं स्थानं, प्रमादस्य बशाद् मतः । तत्रैव क्रमण भयः, प्रतिक्रमणमुच्यते ।। क्षायोपशमिकाद् भावा-दौदयिकस्य वशं गतः | तत्रापि च स एवार्थः प्रतिकूलगमात् स्मृतः ।।
- मावश्यक, ४ प्रमादयश अपने स्थान को छोड़कर दूसरे स्थान--हिंसा आदि में गये हुए आत्मा का लौटकर अपने स्थान-आत्मगुणों में आ जाना प्रतिक्रमण है तथा क्षायोपशामिकभाव में औदयिकभाव में गये हुये आस्मा का पुनः मूलभाव में आजाना प्रतिक्रमण है । पंचबिहे पडिक्कमणे, पण्णते, तं जहा-आसवदारपडिक्कम, मिच्छत्तपडिक्कमणे, कसायपडिक्कमणे, जोगपडिक्कमणे, भावपडिक्कमणे ।
-स्थानाङ्ग २३।४६७
तबा आवश्यक हरिभनीय अ. ४ पांच प्रकार का प्रतिक्रमण कहा है१. आसबद्वार—हिंसा आदि का प्रतिक्रमण २. मिथ्यात्व-प्रतिक्रमण ३, कषाय-क्रोधादिका प्रतिक्रमण ४. योग-अशुभयोगों का प्रतिक्रमण ५. भाव-प्रतिक्रमण ("मिच्छामि दुक्कड" घोनकर पुनः वहीं दुष्कृत्य करते रहना वन्य-प्रतिक्रमण है और दुबारा उसका सेवन न करना भाव-अतिक्रमण है।)