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/ १. बसं थामं च पेहाए, सद्धामारोगमध्यां ।
खेत काल च विशाय तप्पाणं निजुजए |
तप कैसे और किस लिये ?
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- वशकालिक ८३५
अपना बल, हुड़ता श्रद्धा आरोग्य तथा क्षेत्र काल को देखकर आत्मा को तपश्चर्या में लगाना चाहिए ।
| २. तदेव हि तपः कार्य, दुयनिं यत्र नो भवेत् । ये न योगा न हीयन्ते क्षीयन्ते
नन्द्रियाणि च ।
- तपोष्टक (यशोविजयकृत)
तपसा ही करना चाहिए, जिसमें दुर्ष्यानि न हो, योगों में हानि न हो और इन्द्रियां क्षीण न हों !
| ३. नन्नत्थ निज्जरस्याए तवम हिज्जा |
केवल कर्म-निर्जरा के लिए तपस्या करना लोक व यशःति के लिए नहीं ।
४. लो पूयणं तवसा मावहेज्जा ।
- दशकालिक हा४ चाहिए। इहलोक -पर
- सूत्रकृतांग ७।२७
तपस्या द्वारा पूजा की इच्छा न करनी चाहिए |
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