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तप से लाभ १. तधेरण परिजभाइ ।
---उत्तराध्ययम २८।३५ तपस्या मे आत्मा पवित्र होती है। २. सवेरग बोदार जणयइ । -उत्तराभ्ययन २२७
तपरया से ध्य प्रदान अर्थात् कर्मों की शुद्धि होती है। ३. भबकोडीसंचियं काम्म, तवसा निजरिज्जइ ।
-उसराध्ययन २०१६ करोडों भवों के संचित कर्म तपस्या से जीर्ण होकर झड़ जाते हैं । तपसा प्राप्यते सत्त्वं सत्त्वात् संपाप्यते मनः । मनसा प्राप्यते त्वात्मा, ह्यात्मापत्त्या निवत ने ।।
–मैत्रायणी आरण्यक १४ तप द्वारा सत्त्व (ज्ञान) प्राप्त होता हैं, सत्त्व से मन वश में आता है, मन वश में आने से आत्मा की प्राप्ति होती है और आत्मा
की प्राप्ति हो जाने पर संसार से छुटकारा मिल जाता है । ५. तपसव महोग्ने रण, यदुरापं तदाप्यते ।
-योगवाशिष्ठ ३।६८३१४ जो दुष्प्राप्य वस्तुएं हैं, वे उग्रतपस्या से ही प्राप्त होती हैं । ६. यदुस्तरं यदुरापं, यदुर्ग यच्च दकरम् । सर्व तु तपसा साध्य, तपो हि द रतिक्रमम् ।।
-मनुस्मृति १११२३०