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२० आलोचना के विषय में विविध १. आलोचना करने न करने के कारण
नीन कारणों से व्यक्ति कृतगापों की आलोचना करता है। वह सोचता है कि आलोचना नहीं करने से इहलोक परलोक एवं आत्मा निदित होते हैं तथा सोचता है कि आलोचना करने से ज्ञान-दर्शन-चरित्र की शुद्धि होती है । तीन कारणों में मायी-पुरुष कृतपापों की आलोचना नहीं करता। वह सोचता है कि मैंने भूतकाल में दोष सेवन किया है, समान में : हा और पणिा में भी किए बिना नहीं रह सकता तथा यह सोचता है कि आलोचना आदि करने से मेरे कीर्ति, यश, एवं पुजा-सत्कार नष्ट हो जायेंगे।
--स्यानाङ्ग ३३ २. आलोचना कौन करता है ? ।
दसहि टागोहि सम्पन्न अणगारे अरिहइ अत्तदोसे आलोइप्सए, तं जहा–१ जाइसंपन्ने. २ कुलसंपन्ने ३ विगायसंपन्ने ४ गाणसंपन्न, ५ दसमासंपन्ने, ६ चरित्तसम्पन्न, ७ खंते, ८ दंते, ६ अमाई, १० अपच्छागुताको ।
-भगवती २५७१७६६ तथा स्थानाङ्ग १०७४३
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