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________________ १३ / १. बसं थामं च पेहाए, सद्धामारोगमध्यां । खेत काल च विशाय तप्पाणं निजुजए | तप कैसे और किस लिये ? 1 - वशकालिक ८३५ अपना बल, हुड़ता श्रद्धा आरोग्य तथा क्षेत्र काल को देखकर आत्मा को तपश्चर्या में लगाना चाहिए । | २. तदेव हि तपः कार्य, दुयनिं यत्र नो भवेत् । ये न योगा न हीयन्ते क्षीयन्ते नन्द्रियाणि च । - तपोष्टक (यशोविजयकृत) तपसा ही करना चाहिए, जिसमें दुर्ष्यानि न हो, योगों में हानि न हो और इन्द्रियां क्षीण न हों ! | ३. नन्नत्थ निज्जरस्याए तवम हिज्जा | केवल कर्म-निर्जरा के लिए तपस्या करना लोक व यशःति के लिए नहीं । ४. लो पूयणं तवसा मावहेज्जा । - दशकालिक हा४ चाहिए। इहलोक -पर - सूत्रकृतांग ७।२७ तपस्या द्वारा पूजा की इच्छा न करनी चाहिए | ३२
SR No.090530
Book TitleVaktritva Kala ke Bij
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDhanmuni
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages837
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size8 MB
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