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पांचवां भाग : पहला कोष्ठक
जो दुस्तर है, दुष्प्राप्य है, दुर्गम है, और दुष्कर है--वह सब तप द्वारा सिद्ध किया जा सकता है, क्योंकि तप दुरतिक्रम है । इसके
भागे कठिनता जैसी कोई चीज नहीं है । ७. तपसा च कृतः शुद्धो, देहो न स्यान्मलीमसः ।
-हिंगुलप्रकरण तपस्या से शुद्ध किया हुआ शरीर फिर मला नहीं होता। ८. तवसा अवहट्टलेस्सस्स, सरगं परिसुज्झइ ।
-वशाच स स्कन्ध ५५६ तपस्या से लेश्याओं को संवृत करनेवाले व्यक्ति का दर्शनसम्परत्व परिणोधित होता है ।