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श्रावक-धर्म १. पंचे व अगुवाई, गुरगच्वयाई च हुति तिन्नेब । सिक्वावयाई चउरो, सावगधम्मो दुवालसहा ।
-भावकधर्म प्राप्ति ६ पांच अणुव्रत, तीन गुणवत, और चार शिक्षाव्रत-इस प्रकार
'श्रावकधर्म' बारह प्रकार का है। २. अगारि सामाइयंगाई, सड्ढी काएण फासए । पोसहं दुओ पक्खं, एगराय ए हाबए ।
—उस राष्ययन ५१२३ श्रद्धानु-श्रावक को निःशङ्कित आदि सामायिक के आठों अंगों का पालन करना चाहिए। दोनों पक्षों में अमावस्या-पूर्णिमा को पोषब करना चाहिए, कदाचित् दो न हो सके तो एक तो अवश्य
करना ही चाहिए । धावक के प्रकार१. उवासगो दुबिहा, पात, जहा-वती, अवती वा !
--निशीय उ० ११ चूणि उपानक-श्रावक दो प्रकार के होते हैं--
व्रती, और अवती-(सम्यग्दृष्टि ।) ४. नामादि चउभेओ, सहो भावेण इत्थ अहिगारो, तिविहो य भावसड्ढा, दंसगा-वय-उत्तरगुग्गेहि ।
----श्राविधि गाथा ४