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पाँचवां भाग : पहला कोष्टक
३. श्रावक की ग्यारह प्रतिमाएं
एक्कारस उवासगपडिमाओं पणत्ताओ, तं जहा-बसणसावए, कयन्त्रयकम्मे, सामाइअकडे, पोसहोववासनिराए, दिक्षाबंभयारी रत्तिपरिमाणकडे, विआ वि राऔ बि बंधारी, असिगाई विडाइभाई गोलिकडे, सचित्तपरिणाए, आरम्भपरिणाए, पेरू परिणाए, उद्दिभत्तपरिणाए, समभूए आबि भवइ समन उत्तो !
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" प्रतिमा का अयं प्रतिज्ञा है । धायक के लिए ग्यारह प्रतिमाएं कही हैपहली प्रतिमा में श्रावक शट्रा-काक्षादि दोषरहित सम्यकत्व का पालन करता है। धूसरी प्रतिमा में श्रावक अरणुनत-गुणवत का विधिवत् पालन करता है । तीसरी प्रतिमा में शावक दोनों वक्त सामायिक एवं शावकाशिक का आगमन करता है । चौथी प्रतिमा में श्रावक गर्व के दिनों में पूर्णपोषध करता है। पाँची प्रतिमा में धावक दिन में पूर्ण ब्रह्मचारी एवं रात को मयांदासहित ब्रह्मचर्य का पालन करता है। छठी प्रतिमा में श्रायक दिन-रात पूर्ण ब्रह्मचारी रहता है, स्नान एवं रात्रिभोजन का सर्वथा त्याग करता है और कच्छ नहीं बांधता । सातवी प्रतिमा में श्रावक मचित्त-आहार का त्याग करता है । आठवीं प्रतिमा में श्रावक आरम्भ-समारम्भ का त्याग करता है 1 नववी प्रतिमा में श्रावक नौकर आदि से भी आरम्भ नहीं करवाना ।