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वक्तृत्वकला के बीज
भूत-भविष्यत् एवं वर्तमानकाल-सम्बन्धी जिस विषय में शंका
हो जाये, उसे ऐसा ही है' ऐसा न कहे। ६. सच्चा वि स न बत्राब्वा, जओ पावस्म आगमो ॥११॥
जिस से पाप लगता हो, ऐसी सत्यभाषा भी नहीं बोलनी
चाहिए । ७. तहेव काणं काणत्ति, पंडगं पंडगे त्ति वा ।
वाहियं वावि रोगित्ति, तेणं चोरे त्ति नोबए ।।१।। इसी प्रकार काने को काना, नपुसक को नपुंसका, रोगी को रोगी एवं चोर को चोर नहीं जाना चाहिए क्योंकि इस से
सुर ने बाले को दुःख होता है। ८. अज्जिए पज्जिए वावि, अम्मो माउस्सियत्ति य ।
पिउस्सिए भाइणेज्जत्ति, भूए णत्ता णिति य । हे दादी ! हे नानी ! हे परदादी ! हे परनानी ! हे माँ ! हे मौसी ! हे बुआ ! हे भानजी ! हे पुत्री ! हे पोती । (स्त्रियों को इस प्रकार सांसारिक नामों से आमन्त्रित न करे, किन्तु उनके नाम-गोत्रादिक से बुलावे ।) इसी प्रकार पुरुषों को
दादा ! नाना आदि नाम से न बुलावे । ई, पंचिदिआण पाणाणं, एस इत्थी अयं पुमं ।
जाव णं न वियाणिज्जा, ताब जाइत्ति आलवे ॥२१॥ पञ्चेन्द्रिय जीवों के बारे में—यह स्त्री है- यह पुरुप है... ऐसे जहाँ तक न जान लिया जाये. यहां तक यह कुत्ते को जाति है,
गाय की जाति है-स जाति शब्द का प्रयोग करना चाहिए । १०. सुकडित्ति सुपक्कित्ति, सुच्छिपणे सुड्डे मडे ।
सुनिटिए सुलदित्ति, सावज्ज बज्जए मुणी ।।१।।