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श्रावक के गुण
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१. कयवयकम्भो तह सीलवं गुणवं च उज्जुववहारी । गुरु सुस्सूसोपवण-कुसलो खलु साबगो भावे ||
- धर्मरत्न प्रकरण ३३ (१) जो व्रतों का अनुष्ठान करनेवाला है, शीलवान है, (२) स्वाध्याय-उप-विनय आदि गुणयुक्त है, (३) सरल व्यवहार करनेवाला है. (४) सद्गुरु की सेवा करनेवाला है, (५) प्रववनकुशल है, वह 'भावश्रावक' है ।
शील का स्वरूप इस प्रकार है
(१) धार्मिकजनों युक्त स्थान में रहना,
( २ ) आवश्यक कार्य के बिना दूसरे के घर न जाना,
(३) भड़कीली पोशाक नहीं पहनना,
(४) विकार पैदा करनेवाले वचन न बोलता,
(५) द्यूत आदि न खेलना,
(६) मधुरनीति से कार्यसिद्धि करना ।
इन छः शीलों से युक्त श्रावक 'शीलवान' होता है ।
२. से जहानामए समरगोवा सगा भवंति 1 अभिगय-जीवाजीवा, उवलद्ध-पुष्णा-पावा, आसव-संवर-वेषणा णिज्जरा-किरिया हिगरण-बंध मोक्ख- कुसला, असज्ज -देवासुर-नाग- सुबण्णजक्ख- रक्खस किन्नर किंपुरिए गरुल- गंधव महोरगाइहिं देवगणेहिं निम्गन्याओ पावयगाओ अराइवकमरिगज्जा, इरण
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