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________________ mr ३ श्रावक के गुण । 1 १. कयवयकम्भो तह सीलवं गुणवं च उज्जुववहारी । गुरु सुस्सूसोपवण-कुसलो खलु साबगो भावे || - धर्मरत्न प्रकरण ३३ (१) जो व्रतों का अनुष्ठान करनेवाला है, शीलवान है, (२) स्वाध्याय-उप-विनय आदि गुणयुक्त है, (३) सरल व्यवहार करनेवाला है. (४) सद्गुरु की सेवा करनेवाला है, (५) प्रववनकुशल है, वह 'भावश्रावक' है । शील का स्वरूप इस प्रकार है (१) धार्मिकजनों युक्त स्थान में रहना, ( २ ) आवश्यक कार्य के बिना दूसरे के घर न जाना, (३) भड़कीली पोशाक नहीं पहनना, (४) विकार पैदा करनेवाले वचन न बोलता, (५) द्यूत आदि न खेलना, (६) मधुरनीति से कार्यसिद्धि करना । इन छः शीलों से युक्त श्रावक 'शीलवान' होता है । २. से जहानामए समरगोवा सगा भवंति 1 अभिगय-जीवाजीवा, उवलद्ध-पुष्णा-पावा, आसव-संवर-वेषणा णिज्जरा-किरिया हिगरण-बंध मोक्ख- कुसला, असज्ज -देवासुर-नाग- सुबण्णजक्ख- रक्खस किन्नर किंपुरिए गरुल- गंधव महोरगाइहिं देवगणेहिं निम्गन्याओ पावयगाओ अराइवकमरिगज्जा, इरण ८ -
SR No.090530
Book TitleVaktritva Kala ke Bij
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDhanmuni
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages837
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size8 MB
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