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________________ पाँचवा भाग : पहला कोष्टक मेव निगंथपावयरणे निस्सं किया रिंगकरिखया निवितिगिच्छा लट्ठा गदिमा पुच्च्यिा निमिछम नि । अलि- मिजपेमारगरागरत्ता- "अयमाउसो । निगंथे पाबयणे अटठे, अयं परमरे, सेसे अगाठे-- ।" उसिय-फलिहा, अबंगुय-वारा, अचियत्ते उर-परघर-पवेसा, चाउद्दसट्टमुछिट्ट-पुणिमासिणीसु पडिपुन्न पोसहसम्म अणपालेमारणा समणे निग्गंथे फासु-एसणिज्जेणं असण-पाण-वाइम-साइमेरणं वत्थ-डिग्गह-कम्बल-पायपुच्छोणं आसह-भेसज्जेणं पीढ-फलग-सेज्जा-संथारएणं पडिलाभेमारणा, बहि सीलव्वय-गुण-बरेमा-पच्चक्खाप-पोसहोववासेहि अहापरिग्गहिएहि तवोकम्मेहि अप्पारणं भावेमारणा विहरति । ते एं एयारूवेणं बिहारेणं बहूई वासाई समरणाबासगपरियागं पाउति पात्तिा आवाहंसि, उप्पन सि वा अप्पन्न सि को बहई भत्ताई अरणसगाए पच्चक्वायंति, बहाई भत्ताई अशासगाए पच्चखाएत्ता, बहूइ भसाई अगामगाए छेने ति, बहुई भत्ताई अगसणार छेइत्ता आलोइयपडिक्कता समाहिपत्ता कालमासे कालं किच्चा अग्नयेरसु दंब लोग देवत्ताए उववत्तारो भति, तं जहा-महाढिएम महज्जुइएमु जावं महासुक्खेसु । -सूत्रकलांग ७.० २।२।२४ जन्में कि कई श्रमणोपासक होते हैं। वे जीव-अजीव के ज्ञाता, पुण्यपाप के रहस्य के जाननेवाले, आश्वव, मंबर, वेश्ना. निर्जरा, जिया, अधिकरण, बंध और मोक्ष के ज्ञान में कुशल, किगी की सहायता से रहित, इत्र, असर, किन्नर, यक्ष आदि देवगणों के
SR No.090530
Book TitleVaktritva Kala ke Bij
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDhanmuni
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages837
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size8 MB
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