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पांचवा भाग : पहला कोष्टक
श्रमणों साधुओं की उपासना करने से श्रावक श्रमणोपासक कह
लाते हैं। ५. अपि दिवशु कामेसु, रति सो नाधिगच्छति । तिण्हक्खयरति हाति, सम्मा स बुद्धसाबको ।।
-धम्मपद १६७ दिव्य काम-भोगों में से रति ही होगी एमालय ने मे मुस्त्र होता है, वही युद्ध का सकला श्रावक है । सागारा अनगारा च, उभो अयोग्य निम्सिता। आराधयन्ति सद्धम्म, योगक्षेमं अनुत्तरं ।।
--इतिश्रुत्तक १८ गृहस्थ और प्रजित (साधु दोनों ही एक दूसरे के सहयोग से कल्याणकारी सर्वोत्तम सद्धर्म का पालन करते है।