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________________ श्रावक का स्वरूप १. श्रद्धालुतां श्रातिपदार्थनिन्तनाद्, धनानि पात्रेषु वपत्यनारतम् । किरत्यपुण्यानि सुसाधुमेकना-दतोपि तं श्रावकमाहुरत्तमा : ।। __ --श्राविधि, पृष्ठ ७२, श्लोक ३ श्रा-वह तत्वार्थचिन्तन द्वारा श्रद्धालुता को नदद करता है । व-निरस्तर सत्पात्रों में अनरूप बीज बोता है । क-शुद्धगाधु की रावा करके. पायधूलि को दुर फेकता रहता है अतः उसे उत्तमपुरुषों न श्रावक कहा है। २. श्रा-श्रद्धावान हो, ब-विचकी हो, क-त्रियावान हो, वह श्रावक है। -घासीरामजी स्वामी ३. उपासन्ते सेवन्ते साधून्, इति उपासकाः श्रावकाः । -उत्तराध्ययन २ टीका साधुओं की उपासना-भवा करते हैं अत: श्रावक उपासक कह लाते हैं। ४. श्रमणामुपास्ते इलि श्रमगोपासक : । -उपासक दशा १ टीका
SR No.090530
Book TitleVaktritva Kala ke Bij
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDhanmuni
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages837
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size8 MB
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