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पांचवां भाम . पहला कोष्टक
अखण्डवस्तु है । अतः लोक-व्यवहार में और धर्म के क्षेत्र में उसका विकास एक साथ होता है । जिमका व्यावहारिकजीबन पतित और गया-बीता होगा, उसका धार्मिक जीवन उच्चश्रेणी का नहीं है। नकला। अत: तमय जीवनयापन करन के लिए व्यावहारिक जीवन को उच्च बनाना परमवश्यक है। जब व्यवहार में पवित्रता आती है, तभी जीवन धर्म-साधना के योग्य बन पाता है।
--योगशास्त्रकार श्री हेमचन्द्राचार्य के मन्तव्य से