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पांचवा भाग पहला कोष्टक
(१५) बुद्धि के आठ गुणों से युक्त होकर प्रतिदिन धर्म-श्रवण करे । (१६) अजीर्ण होने पर भोजन न करे ।
(१७) नियत समय पर सन्तोष के साथ भोजन करे ।
(१८) वर्ग के साथ अर्थ-पुरुषार्थ काम-पुरुषार्थ और मोक्ष-पुरुषार्थ का इस प्रकार रोवन करे कि कोई किसी का बाधक न हो । (१९) अतिथि माधु और दीन-असहायजनों का यथायोग्य सत्कार करे ।
(२०) कभी दुराग्रह के वशीभूत न हो ।
(२१) गुणों का पक्षपाती हो जहाँ कहीं गुण दिखाई दे, उन्हें ऋण और उनकी करे | (२२) देश और काल के प्रतिकूल आचरण न करें 1
(१३) अपनी शक्ति और असविल को समझे। अपने सामथ्यं का विचार करके ही किसी काम में हाथ डाले, सामर्थ्य न होने पर हाथ न डाले ।
(२४) नवात्रा पुरुषों की तथा अपने से अधिक ज्ञानवान् पुरुषों की विनय-भक्ति क े 1
(२५) जिनके पालन-पोषण करने का उत्तरदायित्व अपने ऊपर हो, उनका पालन-पोषण करे ।
(२६) दीर्घदर्शी हो अर्थात् आगे-पीछे का विचार करके कार्य करे । (२३) अपने हित-अहित करे समझे, भलाई-बुराई को समझे । ( २८ ) लोकप्रिय हो अर्थात् अपने सदाचार एवं सेवा कार्य के द्वारा जनला का प्रेम सम्पादित करे ।
(२९) कृतज्ञ हो अर्थात् अपने प्रति किये हुए उपकार को नम्रता पूर्व स्वीकार करें