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था भाग चौथा कोष्ठक
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उन्होंने शंकर से मंडन मिश्र को अपनी ओर खींचने की सलाह दी। नर्मदातट पर माहिष्मतीनगरी गये । मंडन से १६ दिन' चर्चा हुई। (उभयभारती उनकी पत्नी मध्यस्थ थी) मंडनमिश्न हारे। फिर उभयभारती भांगिनी के नाते चर्चा में आ बैठी। कामशास्त्र-सम्बन्धी प्रश्न चलाए । शंकर ने समय मांगकर परदेह-प्रवेशिनी निया से मृत राजा के शरीर में प्रवेश किया और कामशास्त्र पढ़ा । तत्पश्चात् उभय. भारती से १५ दिन चर्चा करके विजय प्राप्त की। दोनों (पति-पत्नी) शंकर के शिष्य-शिष्या बने एवं उनका सहयोग पाकर इन्होंने, वैदिकधर्म व.: अधिक प्रचार किया । सम्वत् ८६७ में शंकराचार्य दिवंगत हो गये।
–शंकरदिग्विजय के आधार से ।
०. महात्मा कबीर
इनका जन्म वि० सं० १४५५ जेठगुदी पूनम को हुआ था। माता का नाम नीमा और पिता का नाम नीरू था । ये जुलाहे का धंधा करते थे। एक बार ये एक पहररात रहते गंगा घाट की लीड़ियों पर जा पड़े । उधर से गंगास्नान करके लौटते समय स्वामी रामानन्दजी का पर इनके सिर पर गड़ गया । माश्चर्य रामानन्दजी के मुंह से 'राम-राम' शब्द निकाला । इन्होंने इसी रामराम को गुरुमंत्र मान लिया
और रामानन्दजी ने भी इन्हें शिष्यरूप में स्वीकार कर लिगा । (ये शूद्र को शिष्य नहीं बनाते थे।)
कबीर पढ़े-लिखे न होने पर भी भामिक कवि थे । इनको माननेवाले हिन्दू-मुस्लिम दोनों ही थे। एक बार झूठा रोजा, मूठी ईद कह देने पर इन्हें वादशाहू सिकंदर लोधी द्वारा गंगा में बहा दिया गया । सब इन्होंने कहा