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चौथा भाग चौथा कोष्ठक
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ले जायें। स्वाद न लेने का हल्कापन होता है एवं तपस्या होती है ।
४. अप्पपिंडास पाणासि, अप्पं भासेज्ज सुव्वए ।
- सूत्रकृतांग ८।२५
सुव्रती मुनि अल्ला खाए, अल्प पीवे और अल्प बोले ।
५. मियं कालेण भक्तए ।
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— उत्तराध्ययन १।३२
समय होने पर भी साधु को परिमित भोजन करना चाहिए।
६. तहा भोत्तन्वं जहा से जायामाता य भवति, न य भवति विब्भ्रमो न भंसणा य धम्मस्स ।
- प्रश्नव्याकरण २३४
ऐसा हित-मित भोजन करना चाहिए, जो जीवनयात्रा एवं संयमयात्रा के लिए उपयोगी हो सके और जिससे न किसी प्रकार का विभ्रम हो और न धर्म की सना हो ।
७. जे मिक्खू आयरिय उवज्झाएहि अदिन्नं आहार माहारेइ - नीशोष ४१२२
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आहारतं वा साइज्जइ ।
जो सानु, आचार्य - उपाध्याय का बिना दिया अर्थात् उन्हें पूछे बिना बाहार करे या करते हुए का समर्थन करे तो उसे लघुमासिक प्रायश्चित्त माता है।
८. असंविभागी न हु तस्स मोक्खो ।
-- वशवैकालिक १२ २३
साथी मुनियों को हिस्सा दिये बिना आहारादि का उपयोग करनेवाले मुनि को मोक्ष नहीं मिलता।
६. हजरत इब्राहिम ने एक फकीर से पूछा - सच्चा संत कौन है ?