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________________ चौथा भाग चौथा कोष्ठक ३०३ ले जायें। स्वाद न लेने का हल्कापन होता है एवं तपस्या होती है । ४. अप्पपिंडास पाणासि, अप्पं भासेज्ज सुव्वए । - सूत्रकृतांग ८।२५ सुव्रती मुनि अल्ला खाए, अल्प पीवे और अल्प बोले । ५. मियं कालेण भक्तए । - — उत्तराध्ययन १।३२ समय होने पर भी साधु को परिमित भोजन करना चाहिए। ६. तहा भोत्तन्वं जहा से जायामाता य भवति, न य भवति विब्भ्रमो न भंसणा य धम्मस्स । - प्रश्नव्याकरण २३४ ऐसा हित-मित भोजन करना चाहिए, जो जीवनयात्रा एवं संयमयात्रा के लिए उपयोगी हो सके और जिससे न किसी प्रकार का विभ्रम हो और न धर्म की सना हो । ७. जे मिक्खू आयरिय उवज्झाएहि अदिन्नं आहार माहारेइ - नीशोष ४१२२ -. आहारतं वा साइज्जइ । जो सानु, आचार्य - उपाध्याय का बिना दिया अर्थात् उन्हें पूछे बिना बाहार करे या करते हुए का समर्थन करे तो उसे लघुमासिक प्रायश्चित्त माता है। ८. असंविभागी न हु तस्स मोक्खो । -- वशवैकालिक १२ २३ साथी मुनियों को हिस्सा दिये बिना आहारादि का उपयोग करनेवाले मुनि को मोक्ष नहीं मिलता। ६. हजरत इब्राहिम ने एक फकीर से पूछा - सच्चा संत कौन है ?
SR No.090530
Book TitleVaktritva Kala ke Bij
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDhanmuni
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages837
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size8 MB
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