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________________ साधु का आहार २६ १. पंतं लूहं सेवंति, वीरा सम्मतदसिणो । - आधारांग २६ सम्यग्दर्शी वीरपुरुष नीरस और सूक्ष्म आहार का सेवन करते हैं। २. तित्तम व कड व कसायं, अंबिलं व महुरं लवणं वा । एयलद्धमण्णत्थपउत्तं, महुघयं व भुजिज्ज संजए || ... शर्वकलिक ५११६७ —- P क्रे तीखा, कडुवा, खट्टा मीठा तथा खारा किसी भी प्रकार का जो शास्त्रोक्त विधि से प्राप्त हुआ है, उसे मधु वृत आहार समान मानकर साधु को समभाव से खाना चाहिये । ३. सेभिक्खु वा भिक्खुणी वा असणं वा पाणं वा खाइमं वा साइमं वा आहारेमाणे णो वामाओ हणुयाओ दाहिणं हृणुयं सचारेज्जा आसाएमाण । दाहिणाओ वा हणुयाचो दामं हणुयं णो संच्चारेज्जा आसायमाणे । से अणासायमाणे लाघवियं आगममाणे तवे से अभिसमन्नागए भवइ । - आचारांग ८।६ साधु अथवा साध्वी असनादिक का आहार करते समय स्वाद लेने के लिए उस आहार को बायीं दाढ़ से दाहिनी दाड़ की ओर न ले जाये और दाहिनी दाढ़ से बायीं दाढ़ की ओर न ३०२
SR No.090530
Book TitleVaktritva Kala ke Bij
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDhanmuni
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages837
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size8 MB
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