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चौथा भाग : पौया कोष्ठक
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पहलेषणा के इस शोष :गवेषणा के अनन्तर आहार आदि ग्रहण करते समय साधु को निम्नोक्त दस दोषों का परिहार करना आवश्यक है(१) पांकित,(२) म्रक्षित, (३) निक्षिप्त, (४) पिहित, (५) सहुल, (६) दातृकर्म, (७) उन्मिथ, (८) अपरिणत, (९) लिप्त, (१०) छदित । (बयालीस दोषों का विवेचन ‘चारित्रप्रकाश पुज २, प्रश्न १५" में किया गया है।)