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चौथा भाग : चौथा कोष्ठक
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मुनि वृष्टि बरसते समय, ओस पड़ते समय, जोर से हवा--- आंधी चलते समय एवं अल आदि सूक्ष्म जीव गिरते समय गोचरो न जाय।
५. समर्ण माहणं वाबि, किविणं वा वणीमगं।
उबसंकमंतं भत्तट्ठा, पाणलाए व संजए। तमइक्कमित्त न पविसे, न चिट्टे धक्खुगोयरे । एमंतमवइक मित्ता, तत्थ चिट्ठिज्ज संजए ।
--दशवकालिक ५५२०१०-११ श्रमण-ब्राह्मण, कृपण पतं भिखारी आदि अशी की प्राप्ति के लिए पहले गृहस्थ के घर में खड़े हों तो उन्हें लांघ कर घर में प्रवेश न करे तथा दाता और भिक्षुओं की दृष्टि
पड़े, यहाँ खल्ला न रहकर एकान्त में ठहरे। ६. गोयरग्गप विट्ठो य, न निसीइज्ज कत्थई । कहं च न पबंधिज्जा, चिट्ठित्ताण व संजए।
-वशवकालिक राम गोचरी गवा हुआ मुनि (विशेष कारण के सिया) गृहस्थ के
घर में न बैठे और न खड़ा रहकर धमकथा कहे । ७. सयणासणवत्थं बा, भत्तं पाणं व संजए। अदितस्स न कुप्पिजा, पच्चक्खे विय दीसओ ।।
-दरावकालिक ५२।२८ शयन, आसन, वस्त्र, भन्न और पानी प्रत्यक्ष सामने पड़े दौख रहे हैं, फिर भी यदि दाता न दे तो सासु उस पर कोप न करे।