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चौथा भाग : चौथा कोष्ठक
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धर्मों का प्रचार करने लगे। यह प्रचार कतिपय रूढ़िवादी यहूदियों को, असह्य हो गया । उन्होंने इन पर ऐमे मिथ्या अभियोग लगाये जिसके कारण इन्हें प्राणदण्ड दिया गया । सूली पर चढ़ने से पूर्व इनकी प्रार्थना थी-"प्रभो ! इन लोगों को क्षमा कीजिए, ये बेचारे नहीं जानते कि हम क्या कर रहे है ?" ईसा के साइमन (पीटर) आदि १२ मुख्य शिष्य थे। ईसाईधर्म और इस्वी सन् के प्रवर्तक ईसा ही थे। ईसाई धर्म का मुख्य तत्त्व है : Love is God, God is Love. अर्थात् प्रेम ही ईश्वर है और ईश्वर ही प्रेम है ।
- कल्याण संतअंक, तथा
'ईसाई धर्म क्या कहता है ?' के आधार से। ५. सुकरात
ईसा से पूर्व पांचवीं सदी के उत्तरार्ध में यूनान में इनका जन्म हुआ। पिता सिलावट थे एवं माता दाई का काम करती थी। बचपन से ही में पढ़ने में तेज थे। इन्होंने महात्माओं से ज्ञान एवं जजों-वकीलों से तर्क-शक्ति बढ़ाई। क्रोध को विशेषरूप से जीता और राजधानी एथेंस में धर्म-प्रचार करने लगे। उस समय सुफीसंतों का वहाँ बड़ा जोर था । वे लौकिक-प्रेम की गाथाओं के माध्यम से लोगों को ईपवर-प्रेम की और आकृष्ट करने का स्वांग रचते थे। परन्तु वस्तुतः परमार्थसत्ता के वास्तविक ज्ञान का उनमें अभाव ही था। सुकरात के प्रभाव से उन लोगों का प्रभाव शनैः शन: क्षीण होने लगा।