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चौथा भाग : चौथा काष्ठक
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रुकी, राजा समझा 1 एक बार एक राक्षस इन्हें मारने दौड़ा । बुद्ध शान्त रहे । राक्षस कबूतर के रूप में परिवर्तित
....कल्याण संतअंक के आधार से ।
३. पारसी-धर्म के संस्थापक महात्मा 'जरथुछत्र'
ईसा से लगभग ६०० वर्ष पहले पूर्वी ईरान के रए शहर में माडिया नाम की जाति के मगी नामक गोत्र में इनका जन्म हुआ । इनके वंश का नाम पितमा (ज्योतिर्मय), माता का नाम दोदा और पिता का नाम पोकशास्प था ।
कहा जाता है कि इनके जन्म से पूर्व ही अत्याचारी बादशाह और सरदारों को अपशकुन होने लगे । उन्होंने इनको मारने के अनेक उपाय किये, इन्हें बलती हुई आग में डाला गया, पर आग बुद्दा गई, बाघों के झुण्ड में फेंका गया, पर उनके • जबड़े ही जवाड़े गये और वे जीवित रह गये। वे १५ वर्ष की
आयु में तपस्या के लिए जंगल में जा बैठे । १५ वर्ष तक कठोर तपस्या करके इन्होंने कामादि-शत्रुओं पर विजय पाई और "जरपुश्त्र' (सुनहरी रोशनीवाले) के नाम से प्रसिद्ध हो गये । फिर ये सच्चिदानंद-स्वरूप ईश्वर को आराधना और मानव-सेवा का प्रचार करने लगे ।
प्रारम्भ में लोगों ने इनकी बातों पर कोई ध्यान नहीं दिया, पर जब बल्ल के वादशाह बीताश्प ने इन्हें आमश्रित किया और इनका उपदेश स्वीकार किया तब दूसरे लोग भी काफी संख्या में इनको मानने लगे ।
मतहत्तर वर्ष की आयु में प्रार्थना करते समय कतिपय विरोधियों द्वारा इन पर आक्रमण हुआ इन्होंने प्रसन्नतापूर्वक