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तृत्वकला के बीज
सुकरात को मनुष्य की अल्पज्ञता का भी पूरा भान हो चुका या । उनका यह प्रसिद्ध वाक्य आ — 1 Know that I Knoranting मेरा नाम तो यही बतलाता है कि मैं कुछ नहीं जानता । इनके आत्मवाद का युवकों पर अत्यधिक प्रभाव पड़ा, किन्तु राज्याधिकारी विरुद्ध हो गये और उन्होंने इन पर निरीश्वरवादिता का अभियोग लगाकर इन्हें मृत्युदंड के रूप में जहर का प्याला दे दिया, जिसे ये हँसते-हंसते भी गए ।
- कल्याण संतअंक के आधार से ।
६. महात्मा डायोजिनीज
डायोजिनीज ग्रीस के एक महान् तत्त्ववेत्ता संत थे । जीवन के बाह्यव्यवहारों के प्रति लापरवाह होकर ये बाजार में पड़े हुए एक काठ के पीने में ही मल्ल पड़े रहते थे । शाह सिकन्दर एकबार इनके दर्शनार्थ आया ओर अपनी महानता दिखलाता हुआ बोला :सिकन्दर में महान विजेता सिकन्दर है ।
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महात्मा -- मैं सिनिक (अवधूत ) डायोजिनीज हूँ । सिकन्दर में सारी दुनियाँ को मुट्ठी में रखता हूँ । महात्मा - मैं सारी दुनियाँ के लात मारता हूँ ! सिकन्दर आप मैं चाहूं उससे ज्यादा नहीं जी सकते । महात्मा – तू चाहे या न चाहे मुझे अवश्य मरना है । सिकन्दर आप चाहें सो माँग सकते हैं ।
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महात्मा - मेरे सामने को धूप छोड़कर दूर हो जाओ । महात्मा की निःस्पृहता से प्रभावित होकर सिकन्दर ने कहा - "अगर सिकन्दर सिकन्दर न होता तो ग्रीस का तस्ववेत्ता डायोजनीज होता ।"
- कल्याण संतक एवं भूति के आधार से ।