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वक्तृत्वकला के बीज
अपने आपको धर्म की वेदी पर चढ़ाते हुए विरोधियों से कहा-'होरमज्द' (ईश्वर) तुम्हें क्षमा करे । पारसीधर्म में वैदिकधर्म की तरह शान, भक्ति और कर्म-तीनों मार्ग अपनाये गये हैं, पर विशेषनल कर्म-मार्ग पर दिया गया है । यदि एक ही शब्द में कहें तो इस धर्म का सार है परोपकार ।
-कल्याण संतअंक तथा 'पारसीधर्म क्या कहता है ?' के आधार से ।
४. महात्मा ईसामसीह :---
___ इनका जन्म वि० सं० ५७ में फिलस्तान की राजधानी यरूसलम से ६ मील दूर बेथसहा नगर के एक बढ़ई परिवार में हुआ था। माता का नाम मरियम और पिता का नाम यूसुफ था। बचपन से ही ईसा में अनेक दैविक गुणप्रकट हो गये थे। १२ वर्ष की आयु में तो ये यरूसलम के बड़े-बड़े विद्वानों से ज्ञान-चर्चा करने लग गये थे।
३० साल की आयु में ये जोर्डन नदी के विनारे यूहन्ना (जांन) नामक एक महात्मा के पास उपदेश सुनने गये । यूहन्ना का उपदेश था- सबके साथ प्रेम से रहो । दूसरों का माल मत छीनो । जो कुछ मिला है, उसी में सन्तुष्ट रहो । गरीबों को मत सताओ । यदि तुम्हारे पास दो कोट है तो एक असे दें दो, जिसके पास न हो । अगर तुम्हारे पास खाने को है तो उसे खिलादो, जिसके पास खाने को कुछ भी नहीं है । अच्छी करनी करो और अपना जीवन बदलो।
ईसा को यूहन्ना का उपदेश बहुत पसंद आया और ये उनके शिष्य बन गये। फिर ये समाज में फैली हुई गलतप्रथाओं का विरोध करते हुए सत्य, दया, दान, क्षमा आदि मानव