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दशाश्रुतस्कन्ध सूत्र - द्वितीय दशा
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माया या छलपूर्ण व्यवहार, सागारियपिंडं जिसके आगार या घर में साधु ठहरा हो, उसके आहार का सेवन करने वाला, आउट्टियाए आि जान बूझकर, पाणाइवायं प्राणातिपात प्राणघात - हिंसा, मुसावायं मृषावाद - असत्य भाषण, वयमाणे- बोलता हुआ, अदिण्णादाणं गिण्हमाणे न दी हुई वस्तु ग्रहण करता हुआ, अणंतरहियाए - (सचित्त) पृथ्वी के, ठाणं - स्थान सोना, णिसीहियं - निसीदन - बैठना,
अन्तर रहित - संलग्न या समीपवर्ती, पुढवीए
( कायोत्सर्ग में खड़े होना), सेज्जं - शयन
इसी प्रकार, ससिणिद्धाए - सचित्त जल आदि से स्निग्ध
एमाणे - करता हुआ, एवं या चिकनी, ससरक्खाए सचित्त रज या बालु युक्त, चित्तमंताए - सचित्त सप्राण, सिलाए - पत्थर, लेलूए - ढेला, कोलावासंसि दीमक, दारुए काष्ठ, जीवपइट्ठिए जीवप्रतिष्ठित ( जीव युक्त), सअंडे - अंडों से युक्त, सपाणे प्राण - द्वीन्द्रिय आदि जीव युक्त, सबीए - बीज सहित, सहरिए हरियाली सहित, सउस्से - ओस युक्त, सउदगे - उदक जलयुक्त, सउत्तिंगे - चींटियों के बिल (कीड़ी नगरे) से युक्त, पणगदगमट्टीए : शैवाल और गीली मिट्टी युक्त, मक्कडासंताणए - मकड़ी के जाले सहित, तहप्पगारं - उस प्रकार के, खंध - स्कंध - तना, तया - त्वचा छाल, पवाल - प्रवाल- कोंपल, पत्त पत्र, पुण्फ - पुष्प, संवच्छरस्स संवत्सर - वर्ष के, सीओदय - शीतोदक सचित्त जल से, वियड - विकृत दोष युक्त, वग्घारिय- व्याप्त, हत्थेण - हाथ द्वारा, मत्तेण छोटे बर्तन से, दव्वीए - चम्मच द्वारा, भायणेण बड़े बर्तन द्वारा, पडिगाहित्ता प्रतिग्रहीत करे ।
भाजन
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स्थविर भगवंतों ने ये इक्कीस दोष प्रज्ञापित किए हैं
१. हस्तकर्म ।
२. मैथुन - संभोग ।
३. रात्रि भोजन ।
४. आधाकर्मिक - नैमित्तिक आहार ।
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भावार्थ - हे आयुष्मन् ! मैंने सुना है, भगवान् महावीर ने, जो निर्वाण प्राप्त हैं, ऐसा कहा- यहाँ आर्हत् प्रवचन में स्थविर भगवंतों ने इक्कीस शबल दोष प्रतिपादित किए हैं।
वे कौनसे इक्कीस शबल दोष हैं, जो श्रमण भगवंतों ने बतलाए हैं ?
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