Book Title: Tattvarthshlokavartikalankar Part 4
Author(s): Vidyanandacharya, Vardhaman Parshwanath Shastri
Publisher: Vardhaman Parshwanath Shastri
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तत्वार्थश्लोकवार्तिक
व्याप्तिसहित हो रहे धूमसे उत्पन्न हुआ वह्निका ज्ञान जैसे अनुमान है, उसी प्रकार दूसरेके मनरूपी व्याप्त लिंगसे जन्यपनेका प्रसंग हो जानेसे उस मन:पर्ययज्ञानको अनुमानपना प्राप्त हो जाय, यह भी नहीं समझना। क्योंकि लिंगदर्शन, व्याप्तिस्मरणपूर्वक मन:पर्ययज्ञान नहीं हुआ है। किन्तु बाधाओंसे रहित होते हुये प्रत्यक्ष प्रमाणके लक्षणकी ही मन:पर्ययमें समीचीन व्यवस्था हो रही है । " इन्द्रियानिंद्रियानपेक्षमतीतव्यभिचारं साकारग्रहणं प्रत्यक्षं arrar " प्रतितराव्यवधानेन विशेषतया वा प्रतिभासनं शदं प्रत्यक्षम् " तथा "अक्षमात्मानमेव प्रतिनियतं प्रत्यक्ष" ये प्रत्यक्षके लक्षण बाधारहित होते हुए मन:पर्ययमें घटित हो जाते हैं । परोक्ष हो रहे मानसमतिज्ञानमें उक्त लक्षण 1 नहीं सम्भवते हैं । सांव्यवहारिक प्रत्यक्षका लक्षण एक भले ही किसी किसी तीव्र सुख, दुःख, उत्कट अभिलाषा प्रकृष्टज्ञान, आदि व्यावहारिकका प्रत्यक्ष करनेमें घट जाय, किन्तु अनेक अर्थपर्यायों और धर्म अधर्म द्रव्योंके हो रहे परोक्ष मानसमतिज्ञानोंमें सांव्यवहारिक प्रत्यक्षका लक्षण नहीं वर्तता है । दूसरी बात यह है कि मुख्य प्रत्यक्षों में व्यवहार प्रत्यक्षके लक्षण घटाने की हमें कोई आवश्यकता नहीं दीखती है । प्रत्यक्षके दो सिद्धांत लक्षण यहां मनःपर्ययमें पुष्ठ घटित हो जाते हैं ।
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नन्वेवं मनःपर्ययशब्दनिर्वचन सामर्थ्यात्तद्वाह्यप्रतिपत्तिः कथमतः स्यादित्याह ।
पुन: किसीकी शंका है कि इस प्रकार मन:पर्यय शद्वकी इस निरुक्तिके बलसे ही उस मन:पर्यय के बाह्य कारणों की प्रतिपत्ति भला कैसे हो जायगी ? बताओ । क्या व्याघ्र या कुशलशद्वका निर्वचन कर देनेसे ही उनके बहिरंगकारणोंकी इप्ति हो जाती है ! इस प्रकार जिज्ञासा होनेपर आचार्य महाराज वार्तिक द्वारा उत्तर कहते हैं ।
यदा परमनः प्राप्तः पदार्थों मन उच्यते । तात्स्थ्यात्ताच्छ्ब्द्यसंसिद्धेर्मंचक्रोशनवत्तदा ॥ १३ ॥ तस्य पर्ययणं यस्मात्तद्वा येन परीयते ।
स मन:पर्ययो ज्ञेय इत्युक्तेस्तत्स्वरूपवित् ॥ १४ ॥
जिस समय पराये मनमें प्राप्त हो रहा पदार्थ " मन " ऐसा कहा जाता है । क्योंकि तत् में
रहा है । जैसे कि " मञ्चाः
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या बगीचों में पशु, पक्षियोंके शद्व करनेपर मचानोंका शद्व
स्थित हो रहे होने के कारण तत् शद्ववना भले प्रकार सिद्ध हो क्रोशन्ति मचान गा रहे हैं, या चिल्ला रहे हैं, यहां खेतों में भगाने, उडाने के लिये बांध लिये गये मंचोंपर बैठे हुये मनुष्योंके करना व्यवहृत हो रहा है। आखेट करनेवाले पुरुष वनमें भी वृक्षोंपर मचान बांधकर शद मचाते हैं। यहां मंचस्थ में मंचका व्यपदेश है । बम्बई में होनेवाले केलाको बम्बई केछा कह देते हैं । I 'चा रहनेवाले यात्रियोंके डेरेको चावलीका डेरा कह देते हैं । तदनुसार यहां भी मनमें स्थित