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प्रवचनसार कर्णिका
व्याख्यान-पहला
अनन्त उपकारी तारक भगवान श्री महावीर परमात्मा . फरमाते हैं कि संसार का भय जिसको लगता है उसीको ... वैराग्य उत्पन्न होता है।
कर्म दो प्रकार के हैं : चलित और अचलित । तपश्चर्यादि के द्वारा जिनकी निर्जरा हो सकती है वे चलित कर्म कहलाते हैं और जो कर्म जिस स्वरूप में बांधे गये हो उनको उसी स्वरूप में भोगना पड़े उनको अचलित कम कहते हैं । ....... जो कर्म उदयकाल में नहीं आये एसे कर्मों को भी
आत्मा अपने पुरुषार्थ के द्वारा उदय में लावे उसको उदीरणा कहते हैं।
. सोलहवे, सत्रहवें और अठारहवें तीर्थंकरोंने चक्रवर्ती पने में चौसठ हजार कन्याओं के साथ विवाह क्यों किया? ... तो जवाव है कि भोगावली कर्मों के कारण से और
भोगको रोग मान करके, तथा ये कर्म भोगे विना जाने वाले नहीं हैं । अर्थात् भोगे विना उन कर्मों की निर्जरा नहीं होगी एसा मानकर ही सोलहवे, सत्रहवें और अठारहवें तीर्थंकरोंने चक्रवर्ती पने में चौसठ हजार कन्याओं से शादी की। . .