________________
- -
. व्याख्यान-वाईसों
२६१ परिवार खुव थे । इस लिये विचार करने लगा कि मैंने परभव में अच्छे काम खूव किये । इस ले में सुखी हूं। 'तो इस भर में भी अच्छे काम करना चाहिये । एसे विचार . रोज करता था। अन्तमें उसके दिल में संसार त्याग की भावना जगी। अपनी पूरी नात (जाति) को जिमाया घर के व्यापारादि वगैरह बड़े पुनको सोंपे और खुद तापसी दीक्षा ले ली। उसने दीक्षा लेने के बाद मासखमण के पारणा में सासखसण किया। पारणा में शुष्क भोजन दिया। दिवस में सूर्य के सामने द्रष्टि लगाई, हाथ ऊंचे किये, सूर्य की आतापना ली। एसी घोर तपश्चर्या करने पर भी वह समकित प्राप्त नहीं कर सका । .. फिर भी आखिर में समकित प्राप्त कर के मोक्ष में जायगा। : तामली तापस अपने धर्म की ऊँचे में ऊँची आराधना करने लगा। फिर भी उस समय वह समकिती नहीं था। परन्तु समकित पाने की योग्यतावाळा था । सास क्षमण के पारणा में वह काष्ट पात्र लेकर के नगरी में से रस कस विना का भोजन लाता था । उस भोजन को इक्कीस वार धोता था। और फिर वह धोया हुआ भोजन खाता था । और ऊपर से मासक्षमण करता था । . . - तुम दानवीर बनो । दान दोगे तो परभव में लक्ष्मी मिलेगी। गुणी जनों के गुणगान गावो पर निन्दा नहीं करें । पड दर्शन को समझने वाले वनो धर्म की आरा'धना में तल्लीन बनो । लोकोत्तर गुणों को पाके गुणं स्वामी बनो। , जिसके शरीर में मांस नहीं, खून नहीं, सूखी हड्डीयां