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प्रवचनसार कणिका
फला? उस रनियाने कहा कि महाराज । आज मुझे सुवहसें उठती वेलामें एसा सुन्दर स्वप्न आया था कि मैं किसी भी लाधु महात्मा को जिमाये विना जीमता नहीं हूं। और एले साधु महात्मा भी सडकमें नही जडते । परन्तु आज स्वप्नमें मुझे कहने में आया कि तू उठ करके शीघ्र ही दरवाजा के बाहर जाना ।
वहां एक महान योगी तुझे मिलेगा । उनको बड़े . सन्मानपूर्वक तू तेरे घर तेड ले आना । और भक्ति.
करना । इससे तू खूब सुखी हो जायगा । इसलिये यह स्वप्न सच्चा होगा कि खोटा इलका विचार करता हुआ मैं खडा था। इतने में तो आपको आते हुये देखा। और -सेरा मन आनन्द ले नाच उठा ।
हे महाराज | मेरा स्वप्न फला । इसलिये आप 'दूसरी किसी भी जगह नहीं जाके सीधे सीधा सेरे घर पर ही पधारो। और मेरा घर पावन करो । सहाराजको
भी एसाही बाहिये था। क्योंकि उनको गाँवमें फिरते 'फिरते पेट पूरता भी खाना नहीं मिलता था ।
और एसी भक्ति से सामनेवाला तेडने आया है तो एसा अवसर कैसे चुकाया जा सकता है ? एसा मानके महाराजने कहा कि बेटा ! चल मैं तेरे घर ही लीधा आता हूं। शेठ दोनों हाथ जोडके आगे चले । और चाचाजी चले पीछे । घर आके शेठने शेठानी से कहा कि सुनती है कि ? आज अपने घर वडे महात्मा पधारे हैं।
आज अपना आंगन पावन हो गया। इसलिये टुवाल, : सावुन, और पानी की डोल लें आ । . शेठानी तो विचारमें पड गई। किसी दिन नहीं:: किन्तु आज इनको ये हेत कैसे उभरा गया ?