Book Title: Pravachan Ganga yane Pravachan Sara Karnika
Author(s): Bhuvansuri
Publisher: Vijaybhuvansuri Gyanmandir Ahmedabad

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Page 467
________________ - - व्याख्यान-वत्तीसवाँ ४२७ के समय आचार्य महाराज ने उन युवानों को बुलाके कहा कि आज सव साधुओं की जय बोलना । मगर इन वृद्ध साधु की जय नहीं बोलना । .... . . जब वे वृद्ध साधु पूछे कि क्यों तुम हमारी जयं 'नहीं बोलते ? तव तुम कहना कि छत्री रखे वह साधु . कहलाता । . . .. . ... - वरघोड़ा में युवानों के इस तरह के वर्तन से उन वृद्ध साधु को मन में गुस्सा आया। अपनी जय नहीं बोलने का कारण युवानों से पूछने पर युवानों ने स्पष्ट कहा कि जो छत्री राखे वो साधु नहीं कहलाना है। तुम छत्री रखते हो इसलिये तुम्हारी जय भी नहीं बोली . जा सकती। ... . . . वृद्ध साधुने चत्री अलग करदी। इसिलिये युवानों ने उनका जयनाद किया। इस प्रकार आचार्य महाराज, दूसरी युक्ति में भी सफल हुए। ___एक समय एक साधु महाराज कालधर्म को प्राप्त हुये । भूतकाल में ऐसा रिवाज था कि कोई साधु काल.. करे तो उस साधु को उपाड़ कर दूसरे साधु जंगल में ले जाते थे । और शव को वहां वोसीरा देते थे। . . आचार्य महाराज ने यहां भी एक नई योजना शोध निकाली । आर्यरक्षित सूरिजी महाराज ने साधुओं को . उद्देश्य करके कहा कि अरे भाग्यवान साधुओं! जो साधुः मृत साधु के शव को उपाड़के ले जाय उसे महान लाभ होता है। यह सुनके वृद्ध साधु तैयार हुए। और कहा कि में उपाडके ले जाने को तैयार हूं.। . ....: आचार्य महाराज ने कहा कि अच्छा तुम जाओगे २७

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