Book Title: Pravachan Ganga yane Pravachan Sara Karnika
Author(s): Bhuvansuri
Publisher: Vijaybhuvansuri Gyanmandir Ahmedabad

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Page 493
________________ - - बोधक सुवाक्य (७) राग द्वेषको घटाने के लिये धर्म करना है. लेकिन : बढाने के लिये नहीं। (७८) द्वेष ईर्ष्या और अहंभावना मानवता को नाश करने ...वाले हैं। (७९) जिस प्रकार शरीरका मैल सावुन और पानीसे साफ किया जाता है। उसी प्रकार ज्ञान और कर्म का मैल झान और क्रिया से नाश होता है। (८०) संसार कला अजमाने से संसार लम्वा होता है। ': और मोक्ष दूर चला जाता है। (८१) संसार कला और धर्म कलामें पशुता और मानवता जितना; भेद है। (८२) संसारकला छोडके धर्मकलामें आगे बढो जिससे : . भावि उज्जवल होगा। (८३) जिसके पीछे संसारकला अजमाके मानव जीवनकी ' वरवादी करते हो उसका अन्तमें करुण विपाक क्या '; . आयेगा ? उसका विचार करो। (८४) धर्म के नाम से चलाई पोल कर्म के खातेमें खतवाती: है और अन्तमें दुख भोगना पडेगा । . . (८५) राजसत्ता से भी कर्मसत्ता अधिक भयंकर है। ... (८६) धर्मकलाका विकास यानी मानवताका विकास । (८७) अज्ञान, अविवेक और असंयम ये तीन पाप के : . मूल हैं। (८८) क्या तुम, तुम्हारी पीछे खड़ी मौत को भूल गये हो?' (८९) विश्व के समस्त जीव सुखके इच्छुक हैं। मगर सच्चा सुख तो मोक्षमें है। (९०) अर्थ और कामकी साधना ये सच्चे सुख़की साधना । परन्तु दुखकी साधना है।.. S4 .

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