Book Title: Pravachan Ganga yane Pravachan Sara Karnika
Author(s): Bhuvansuri
Publisher: Vijaybhuvansuri Gyanmandir Ahmedabad

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Page 494
________________ - - કર प्रवचनसार कर्णिका . (५३) बड़ी बड़ी डिग्रियां प्राप्त कर लेने ले शास्त्री, आचार्य आदि पदवी प्राप्त कर लेने से ज्ञानी नहीं वना जाता किन्तु ज्ञान और क्रिया को जीवन में.... उतारने से ज्ञानी बना जाता जाता है। (५४) संसार समुद्र से भी अन्य कौन तार सकता है ? उसके समर्थ विद्वान पू० उपाध्याय भ० श्रीयशो विजयजी महाराज ने ज्ञानलार में कहा कि."ज्ञानी क्रिया परः शान्तो आवितात्मा जितेन्द्रियः " ज्ञानी होय, क्रिया में तत्पर हो, शान्त होय, भावात्मा हो, और जितेन्द्रिय हो रही अन्य को तार सकता है। (५५) धर्मको माता जेसा माने उसे भी धर्मी कहते हैं। जैले पुत्र माताके विना नहीं जी सकता। उसी प्रकार धर्मी भी घस दिना सच्चा जीवन नहीं जी.. '. सकता। (५६) तपके आगे पीछे तो आसक्तियोंका व जोर हो तो वह तप भले जैसा भी फिर भी चित्तशुद्धि नहीं कर सकता। (५७) दुख अच्छी वस्तु है क्योंकि दुखके समय अहंकार पतला :पड़ता है। और अहंकार पतला हो तो कर्मका निकाल हो जाता है। . "देह सुखं महा दुख" .(५८) सुख बहुत खराब है क्यों कि सुखके समय मनुष्य अभिमानी बनता है। और सुखका राग आत्माको ..:., अधोगतिमें खेंच जाता है। . .. देह. सुखं. महा दुस्खं ." | . ....

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