Book Title: Pravachan Ganga yane Pravachan Sara Karnika
Author(s): Bhuvansuri
Publisher: Vijaybhuvansuri Gyanmandir Ahmedabad

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Page 466
________________ ४१६ প্রবন শনিক। M - r am -- - - - - - - - - - - AHAR - - - MAmartamaanaamaare.. - - - --- (२) मुझसे ताप सहन नहीं हो सकता ललिपछी (छत्ता) रखंगा। (३) में शुद्ध प्रामाण हैं इसलिज जनोई रवंगा। . (४) चोल पटाके बदले में धोती पहनगा। (५) सिर पर चोटी रायगा । आर्यरक्षित सूरि माहाराज ज्ञानी थे। देलमा ... कि इस तरह भी पिताजी ओ दीक्षा देने में पिताजी का ... कल्याण है। पसा विचार के पिताके द्वारा ही पांचों शरत कबूल की। और शुभ हतौ र परिवार के साथ । उनकी और दूसरे कुछ भव्यात्माओं की दीक्षा हो गई। .. दीक्षा देने के बाद आयरक्षित मुरिजी ने विचार . किया कि अब कोई युक्तिपूर्वक पिता मुनि की पांत्रों कुटेव दूर करना चाहिए । वे युक्तियां विचारने लगे। एक लमय कितने ही लड़लों को समझा दिया कि .. देखो बालकों ! तुम सबको वन्दन करना किन्तु इन वृद्ध-... महाराज को वन्दन नहीं करना । जो वे कुछ कह कि . . हमको वन्दन क्यों नहीं करते ? तो तुम कहना कि साधु भगवन्त पैर में पावडी नहीं रखते तुमतो पावडी पहनते हो । इसलिये तुम्हें वन्दन नहीं की जा सकती ।। वालकों के द्वारा इस प्रकार वर्तन करने से वृद्धः मुनि को गुस्सा आ गया । और बोले कि लो ये पावडी निकाल दी। अव तो वन्दन करोगे ? एसा कहके वृद्धमुनि ने पावडी निकाल दी । और वालकों ने भी वन्दन किया। और मुनि खुशी हुए। इस विपय में आचार्य महाराज की युक्ति सफल हुई । एक समय नगरी में वरघोडा (जुलुस) निकलने ते

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